
नई दिल्ली, 5 नवंबर 2025 — कांग्रेस नेता राहुल गांधी के हालिया बयान ने भारतीय राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। राहुल गांधी ने मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों और लोकतंत्र की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि “जैसा नेपाल में हुआ, वैसा भारत में भी हो सकता है”। उनके इस बयान पर भाजपा समेत कई राजनीतिक दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
राहुल गांधी का आरोप
राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि देशभर में मतदाता सूचियों से लाखों नाम जानबूझकर हटाए जा रहे हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कर्नाटक के अलंद क्षेत्र में 6,000 से अधिक मतदाताओं के नाम सूची से गायब कर दिए गए।
उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा —
«“देश के युवा, छात्र और Gen Z संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करेंगे। हम वोट चोरी नहीं होने देंगे। जय हिंद!”»
राहुल का कहना है कि यह सिर्फ तकनीकी गलती नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों को कमजोर करने की साजिश है।
भाजपा का पलटवार
राहुल गांधी के इस बयान के बाद भाजपा ने कड़ा रुख अपनाया। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा —
«“जो लोग नेपाल के मॉडल की बातें कर रहे हैं, वे भारत की स्थिरता को नहीं समझते। अगर उन्हें नेपाल इतना पसंद है, तो वहीं चले जाएं।”»
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “भारत में नेपाल जैसी स्थिति कभी नहीं हो सकती, क्योंकि हमारा संविधान और लोकतांत्रिक ढांचा बेहद मजबूत है।”
राजनीतिक विश्लेषण
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि राहुल गांधी का यह बयान युवाओं को राजनीति में सक्रिय करने की रणनीति का हिस्सा है। कांग्रेस लगातार “वोट चोरी” और “लोकतंत्र बचाओ” जैसे अभियानों के माध्यम से जनसमर्थन जुटाने की कोशिश कर रही है।
दूसरी ओर भाजपा इसे देश की स्थिरता के लिए खतरा बताकर कांग्रेस पर “अराजकता फैलाने” का आरोप लगा रही है।
नेपाल से तुलना क्यों?
नेपाल में पिछले वर्षों में राजशाही समाप्त होकर लोकतंत्र की स्थापना के दौरान बड़े राजनीतिक upheaval हुए थे। राहुल गांधी का संकेत इसी दिशा में था — यानी जब संस्थाओं पर भरोसा टूटता है तो जनता खुद बदलाव की दिशा तय करती है।
निष्कर्ष
राहुल गांधी का बयान फिलहाल भारतीय राजनीति में बहस का नया केंद्र बन गया है। एक तरफ इसे लोकतंत्र के लिए चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है, तो दूसरी ओर भाजपा इसे “अवांछित तुलना” करार दे रही है।
आने वाले दिनों में यह बयान चुनावी माहौल और विपक्षी रणनीति दोनों पर गहरा असर डाल सकता है।



