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“टी. राजा सिंह: अमलापुर की गलियों से रंक से राजा — विवादों और आलोचनाओं भरा सफ़र”

📰 विशेष रिपोर्ट

हैदराबाद – तेलंगाना की राजनीति में टी. राजा सिंह का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। गोशामहल से विधायक के रूप में पहचान बनाने वाले राजा सिंह लोध क्षत्रिय समुदाय से आते हैं। पारिवारिक नाम “टोंगेफ़तू वाले” होने के कारण उन्हें टी. राजा सिंह कहा जाने लगा।

शुरुआती जीवन और संगठनात्मक जुड़ाव

राजा सिंह का जन्म अमलापुर (करवान), हैदराबाद में हुआ। शुरुआती दौर में वे देसी शराब के व्यापार में जुड़े थे। इसी दौरान उनकी मुलाकात हिंदू वाहिनी के नेताओं सत्यम और गोवर्धन से हुई, जिन्होंने उन्हें हिंदुत्व और संगठन में काम करने की बारीकियाँ सिखाईं।

राजनीति में पहला कदम और पार्षद चुनाव (2004–2009)

2004 में धूलपेट क्षेत्र में एक जमीन विवाद के दौरान उन्होंने राजनीतिक कदम रखा। बस्ती-बस्ती बैठकों और शोभा यात्राओं के जरिए उनका नाम तेजी से फैलने लगा। धूलपेट में इनको मदत कई लोध समाज के साथियों ने की शुरुआत में जिनमें योगेश सिंह, मुनीश सिंह, और हजारी परिवार ने की हालांकि शुरुआती दौर में पुलिस द्वारा इनके अपराधों के कारण राऊडी सीट खोली थी आरोप यह भी है कि अपने सगे जीजा का खून का भी आरोप लगा । और पास्टर मर्डर केस में भी आरोपी रहे हालही में एक सभा में यह स्वीकार भी किया ।

राजनीतिक सफ़र की शुरुआत हुई जब राजा सिंह ने 2009 में तेलुगू देशम पार्टी (TDP) के टिकट पर मंगलाहट डिवीजन से पार्षद चुनाव लड़ा।

हालांकि खुद भाजपा और कांग्रेस ने भी 2008 में पार्षद का टिकट नहीं दिया । तेलुगु देशम पार्टी में इनको टिकट दिलवाने में टीडीपी नेता इनके पूर्व साथी उन्होंने कांग्रेस के आनंद सिंह को लगभग 900 मतों के अंतर से हराया। यह जीत उनके राजनीतिक सफ़र की नींव साबित हुई और उन्हें स्थानीय राजनीति में पहचान दिलाई।

विवाद और हिंदुत्व आंदोलन (2008–2010)

2008 में पहली बार श्री राम नवमी की विशाल शोभा यात्रा निकाली गई। इसके बाद राजा सिंह ने गौ रक्षा आंदोलन शुरू किया। 2010 में चारमीनार विधानसभा क्षेत्र में तनाव और दंगे भड़कने पर उन्हें बार-बार मुख्य आरोपी बताया गया। हालांकि बाद में उनका सीधे तौर पर शामिल होना साबित नहीं हुआ, लेकिन उनकी विवादास्पद टिप्पणियों और तेज़ रुख़ ने उन्हें लगातार सुर्खियों में रखा।

चुनावी सफ़र और विधायक बनना

राजा सिंह ने पहले भाजपा से टिकट मांगा, लेकिन उन्हें इनकार मिला। कांग्रेस ने भी टिकट देने से मना किया। अंततः गोशामहल से TDP और बाद में भाजपा के माध्यम से वे विधायक बने।

2014 में भाजपा से चुनाव लड़कर वे विधायक बने। 2018 में उन्होंने जीत दोहराई और 2024 में तीसरी बार विधायक 15–17 हज़ार मतों के अंतर से जीते

विवादास्पद छवि और आलोचनाएँ

  • राजा सिंह ने कई मौकों पर हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ाने वाले बयान दिए।
  • कभी भाजपा के समर्थ में, कभी विरोध में बयान देकर उनकी राजनीतिक छवि पेचीदा बनी।
  • स्थानीय लोगों का आरोप है कि वे जनसंपर्क और विकास कार्यों में असंगत और कम दिखाई देते हैं
  • उनके खिलाफ वसूली और दबाव बनाने जैसी शिकायतें भी सामने आई हैं।
  • राजनीतिक विशेषज्ञ इसे उनकी राजनीतिक नादानी और राजनीति समझ की कमी मान रहे हैं।
  • मीडिया रिपोर्ट में उन्हें कई बार विवादित फुटेज और बयानबाज़ी के कारण सुर्खियों में रखा गया।

हालिया घटनाक्रम (2025)

टी. राजा सिंह ने हाल ही में भाजपा से इस्तीफा दे दिया। राजनीतिक विशेषज्ञ इसे उनकी रणनीतिक भूल और संगठनात्मक अस्थिरता के तौर पर देख रहे हैं।

निष्कर्ष

टी. राजा सिंह की यात्रा स्थानीय संगठन से पार्षद और फिर राज्य स्तरीय नेता बनने तक की कहानी है। विवाद, चुनावी जीत, हिंदुत्व आंदोलन, मीडिया में आलोचना और भाजपा से इस्तीफा — उनके सफ़र में हमेशा उतार-चढ़ाव और नेगेटिव पहलू रहे हैं। कभी समर्थक, कभी आलोचक, उनके अगले कदम पर अब सभी की नजरें टिकी हैं

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